Thursday, 1 August 2013

निःशब्द ...

अश्को  को आज कैसे समझाऊँ जो आँखों से निकल आते हैं
महफ़िल में होती हूँ लेकिन तन्हाई का अहसास दिल जाते हैं
हाले दिल करूँ किस से बयाँ, कोई रकीब भी तो नहीं अपना
तुझे पा कर हमने क्या पाया है
उसे खो कर तो हमने सब कुच्छ खो दिया है
अपनी दिल की सुनकर हमने क्या पाया है
दिल की सुन कर तो हमने सब कुच्छ खो दिया
दर्द के सिवा हमने क्या पाया है
ज़िन्दगी जिसे कहते हैं शयद उसका मतलब आज समझ आया है
जिसकी क़दर हमने ना जनि वही बेशकीमती निकला
ऐसे मोती को हमने हाथों से लुटाया है
क्या हमने पाया क्या, कब हमें खो दिया
अब तो हर रंग बेरंग लगने लगा है
रंगों का असली मतलब तो अब समझ आया है
बिना ख़ुशी के रंग कहाँ होती
अब तो हर रंग बेमाने सा हो गया है !!



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