“आज कोई अपना सगा नज़र नहीं आता
हर ग़म सिने में दबे हैं, जिसे कोई देख नहीं पता
खुदा ने जो दिए रिश्ते, उसकी बेक़द्री की मैंने
जिसकी ये सजा मैंने पाई है, अपने अब सारे बेगाने हैं
बेगाने को अपनी ज़िदगी का हिसाब देना होता है
हर सांस का जवाब देना पड़ता है
न चाह कर भी हर आंसू को दबाना पड़ता है
ये हमारी खताओं की सजा है, जो रो रो कर हँसना पड़ता है ”
हर ग़म सिने में दबे हैं, जिसे कोई देख नहीं पता
खुदा ने जो दिए रिश्ते, उसकी बेक़द्री की मैंने
जिसकी ये सजा मैंने पाई है, अपने अब सारे बेगाने हैं
बेगाने को अपनी ज़िदगी का हिसाब देना होता है
हर सांस का जवाब देना पड़ता है
न चाह कर भी हर आंसू को दबाना पड़ता है
ये हमारी खताओं की सजा है, जो रो रो कर हँसना पड़ता है ”
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