Thursday, 1 August 2013

“ अश्क ”

कतरा कतरा अश्क आँखों से निकलते रहे
सारी रातें हम रफ्ता रफ्ता सोंचते रहे
बारीकियां न मिली उन खातावों की जिसकी सजा मुझे आज तक मिलते रहे
कौन सा था वो पल जहाँ से हम अपनी ज़िन्दगी बिखेरते गए.....





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